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Thursday, December 12, 2019
डोर - लघु कथा । Dor - laghu katha
इंसान की डोर बंधी है अनजान हाथो मे जिसे हम सब ईश्वर अल्लाह कहते है वही हम सब को अपने इशारे से नचाता है कभी हँसाता है कभी रूलाता है प्यार भरे रिश्तों के बंधन मे बाँधकर सपनो की ऊँची उडान भरना सिखाता है उस अनजान डोर से बंधकर जीवन हँसी खुशी पवित्र सुमधुर गंगाजल सा बनकर सरिता की तरह बहता जाता है वही अनजान हाथ हमारे जीवन मे सरगम की मधुर धून बजाता है जिस डोर से वह अनजान हाथ हम सब को बाँधकर रखता है वह सात रंगो का धागा होता है जो हमारे जीवन को इन्द्रधनुष की तरह सतरंगी बनाता है हम सब उसके रंग मंच की कठपुतलीया है जिसकी डोर उसके हाथ मे होती है जिसे हम सब ईश्वर भगवान खुदा अल्लाह ईसामसीह पालनहार तारनहार मोक्षदाता मुक्ति दाता विधाता और ना जाने कितने ही नामो से पुकारते है और वही जानता है कि कब कहाँ कौन पहले उसके पास जायेगा ये तो डोर से बांधकर हमे नचाने वाला ही जानता है हम सब को उस ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उसने हमे यह मानव जन्म दिया है और हमे भी ईमानदारी,दया,प्रेम,अहिंसा,मानवता,शांति,परमार्थ,भक्ति, दुआ और भलाई के मार्ग पर चलकर अपना अमुल्य जीवन सफल बनाना चाहिए ।
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