शीर्षक - गागर में सागर
वो चमन ही क्या फूल ना हो जिसमे
वो अगन ही क्या शुल ना हो जिसमे
वो खुन ही क्या उबाल ना हो जिसमे
वो मन ही क्या सवाल ना हो जिसमे
वो सुर ही क्या सरगम ना हो जिसमे
वो नुर ही क्या शबनम ना हो जिसमे
वो रात ही क्या सितारे ना हो जिसमे
वो बात ही क्या कुँवारे ना हो जिसमे
वो नदी ही क्या गहराई ना हो जिसमे
वो सदी ही क्या लडाई ना हो जिसमे
वो सागर ही क्या तीर ना हो जिसमे
वो गागर ही क्या नीर ना हो जिसमे
वो आँख ही क्या नमी ना हो जिसमे
वो प्यार ही क्या कमी ना हो जिसमे
वो कलम ही क्या दम ना हो जिसमे
वो गजल ही क्या गम ना हो जिसमे
वो स्याही ही क्या खुन ना हो जिसमे
वो राही ही क्या जुनून ना हो जिसमे
वो शराब ही क्या नशा ना हो जिसमे
वो शबाब ही क्या अदा ना हो जिसमे
वो कहानी ही क्या हीर ना हो जिसमे
वो जवानी ही क्या वीर ना हो जिसमे
वो जप ही क्या श्रीराम ना हो जिसमे
वो तप ही क्या हनुमान ना हो जिसमे
वो तलवार ही क्या धार ना हो जिसमे
वो अवतार ही क्या सार ना हो जिसमे
वो मंजार ही क्या शहीद ना हो जिसमे
वो बाजार ही क्या खरीद ना हो जिसमे
वो सरिता ही क्या शांति ना हो जिसमे
वो कविता ही क्या क्रांति ना हो जिसमे
वो लेखन ही क्या सृजन ना हो जिसमे
वो लेखक ही क्या दर्शन ना हो जिसमे
वो ज्ञान ही क्या तरलता ना हो जिसमे
वो शान ही क्या सरलता ना हो जिसमे
वो प्यास ही क्या तडपन ना हो जिसमे
वो रास ही क्या मनमोहन ना हो जिसमे
वो छाँव ही क्या शीतलता ना हो जिसमे
वो गाँव ही क्या गोपालन ना हो जिसमे
वो दिल ही क्या मोहब्बत ना हो जिसमे
वो शील ही क्या शोहबत ना हो जिसमे
वो आदमी ही क्या क्षमता ना हो जिसमे
वो औरत ही क्या ममता ना हो जिसमे
वो प्यार ही क्या बिछडन ना हो जिसमे
वो यार ही क्या लडकपन ना हो जिसमे
वो भक्ति ही क्या भगवन ना हो जिसमे
वो मुक्ति ही क्या हरिशरन ना हो जिसमे
वो महा वीर ही क्या दया ना हो जिसमे
वो दान वीर ही क्या हया ना हो जिसमे
वो कनक ही क्या चमक ना हो जिसमे
वो खनक ही क्या झनक ना हो जिसमे
वो शर्बत ही क्या मिठास ना हो जिसमे
वो पर्वत ही क्या सु-वास ना हो जिसमे
वो शीप ही क्या मोती ना हो जिसमे
वो दीप ही क्या ज्योति ना हो जिसमे
वो स्पर्श ही क्या अहसास ना हो जिसमे
वो विमर्श ही क्या विश्वास ना हो जिसमे
वो तस्वीर ही क्या रंग ना हो जिसमे
वो तकदीर ही क्या जंग ना हो जिसमे
वो सुरमा ही क्या हिम्मत ना हो जिसमे
वो अरमां ही क्या किस्मत ना हो जिसमे
वो मन ही क्या सुन्दरता ना हो जिसमे
वो तन ही क्या दयालुता ना हो जिसमे
वो सावन ही क्या बरसात ना हो जिसमे
वो साजन ही क्या जज्बात ना हो जिसमे
वो पायल ही क्या झंकार ना हो जिसमे
वो घायल ही क्या ललकार ना हो जिसमे
वो अर्पण ही क्या अच्छाई ना हो जिसमे
वो समर्पण ही क्या सच्चाई ना हो जिसमे
वो जिंदगी ही क्या संघर्ष ना हो जिसमे
वो बंदगी ही क्या निस्वार्थ ना हो जिसमे
वो शिक्षा ही क्या संस्कार ना हो जिसमे
वो भिक्षा ही क्या उपकार ना हो जिसमे
वो धरम ही क्या मानवता ना हो जिसमे
वो करम ही क्या कर्मठता ना हो जिसमे
मनु 17.06.20